सलीम जब उस बच्चे को लेकर जाने लगा बकरी समझ गई। उसके बच्चे को यह लोग ले जा रहे हैं।
ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर हरिशंकर परसाई
Graphic: Courtesy Amazon It is a critically acclaimed satirical Hindi novel created by Shrilal Shukla and printed in 1968. This Hindi fiction guide provides a scathing critique of the socio-political landscape of rural India. Established from the fictional city of Shivpalganj, the narrative unfolds in the eyes of your protagonist, Ranganath, a youthful man who returns to his ancestral village to Recuperate from an sickness.
राजा का दर्द – The Royal Toothache – Colouring and hygiene Hindi – The king of the jungle is aquiring a pretty painful toothache, he asks one other animals for enable but they are all afraid of him. Hopeless, he lies in agony right until he satisfied a small mouse. That Regardless that how small he …
दो चूहे – Two Mice Hindi A mouse went out for an experience and meets a peculiar mouse or so he known as himself. The mouse then went on to indicate and try for making this so referred to as mouse verify him self if He's as mousy as he claimed to become. So on they went, …
The narrative weaves alongside one another the lives of numerous figures, reflecting the exceptional tapestry of Varanasi, through the ghats along the Ganges on the narrow lanes pulsating with the city’s history. By using a mixture of humour, satire, and social commentary, Kashi Ka Assi
यह बच्चों के लिए एक गुजराती लोक कथा है।
हिरनी गीदड़ के पीछे दौड़ने लगी। गीदड़ अपने प्राण लेकर वहां से रफूचक्कर हो गया।
वह गाय इतनी प्यारी थी, मोती को देखकर बहुत खुश हो जाती ।
यह कहानी हमें कभी भी चोरी न करने और हमेशा नेक रास्ते पर चलने की सीख देती है।
कालिया से पूरा गली परेशान था। गली से निकलने वाले लोगों को कभी भों भों करके डराता। कभी काटने दौड़ता था। डर से बच्चों ने उस गली में अकेले जाना छोड़ दिया था।
सबसे पहले हम अपने पाठकगण से यह कह देना आवश्यक समझते हैं कि ये महाशय जिनकी चिट्ठी हम आज प्रकाशित करते हैं रत्नधाम नामक नगर के सुयोग्य निवासियों में से थे। इनको वहाँ वाले हंसपाल कहकर पुकारा करते थे। ये बिचारे मध्यम श्रेणी के मनुष्य थे। आय से व्यय अधिक केशवप्रसाद सिंह
बुरे काम का बुरा ही नतीजा होता है बुरे website कामों से बचना चाहिए।
मोरल – सच्ची मित्रता सदैव काम आती है ,जीवन में सच्चे मित्र का होना आवश्यक है।